I.T.R.-1 फॉर्म के बदलाव (आकलन वर्ष 2025-26)
परिचय
आयकर विभाग ने आकलन वर्ष 2025-26 के लिए आईटीआर-1 (सहज) फॉर्म में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जो व्यक्तिगत करदाताओं के लिए टैक्स रिटर्न फाइल करने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। ये बदलाव कुछ करदाताओं के लिए प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, लेकिन कुछ नए नियमों के कारण अतिरिक्त तैयारी की आवश्यकता हो सकती है। यह विस्तृत विश्लेषण आपको सभी प्रमुख बदलावों को समझने में मदद करेगा, ताकि आप अपनी फाइलिंग सही और समय पर कर सकें।
प्रमुख बदलावों का अवलोकन
नीचे आईटीआर-1 फॉर्म में हुए प्रमुख बदलावों की सूची दी गई है, जिन्हें सरल और संक्षिप्त रूप में समझाया गया है। प्रत्येक बदलाव के महत्व और उसके प्रभाव को भी बताया गया है।
बदलाव | विवरण | प्रभाव |
---|---|---|
आधार नंबर अनिवार्य | अब केवल वैध आधार नंबर वाले ही आईटीआर-1 फाइल कर सकते हैं। आधार एनरोलमेंट नंबर का विकल्प हटा दिया गया है। | जिनके पास आधार नंबर नहीं है, उन्हें फाइलिंग से पहले आधार प्राप्त करना होगा। |
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) | सेक्शन 112A के तहत ₹1.25 लाख तक के LTCG को आईटीआर-1 में छूट वाली आय के रूप में दिखाया जा सकता है। | छोटे निवेशकों के लिए राहत, लेकिन अधिक गेन्स या शॉर्ट टर्म गेन्स के लिए आईटीआर-2 जरूरी। |
टैक्स रिजीम का चुनाव | नया टैक्स रिजीम डिफॉल्ट है; पुराने रिजीम के लिए “हाँ” चुनना होगा। | डिडक्शंस चाहने वालों को पुराना रिजीम चुनना होगा। |
विस्तृत डिडक्शंस | पुराने रिजीम में 80C, 80D आदि के लिए ड्रॉपडाउन लिस्ट्स में विस्तृत जानकारी देनी होगी। | सटीकता बढ़ेगी, लेकिन समय और मेहनत ज्यादा लगेगी। |
बैंक अकाउंट्स की जानकारी | सभी भारतीय बैंक अकाउंट्स की डिटेल्स (IFSC, अकाउंट नंबर, प्रकार) देनी होंगी। | रिफंड और वेरिफिकेशन में पारदर्शिता बढ़ेगी। |
TDS शेड्यूल | अब डिटेल्ड TDS शेड्यूल भरना होगा, जिसमें डिडक्टर, टैन, और राशि की जानकारी देनी होगी। | TDS की सटीक रिपोर्टिंग सुनिश्चित होगी। |
बदलावों का विस्तृत विश्लेषण
- आधार नंबर की अनिवार्यता
पहले, जिन करदाताओं ने आधार के लिए एनरोलमेंट कराया था लेकिन उन्हें आधार नंबर नहीं मिला था, वे अपने एनरोलमेंट नंबर का उपयोग करके आईटीआर-1 फाइल कर सकते थे। अब यह विकल्प हटा दिया गया है, जिसका मतलब है कि केवल वैध आधार नंबर वाले ही इस फॉर्म का उपयोग कर सकते हैं। यह बदलाव आधार को टैक्स फाइलिंग से जोड़ने की दिशा में एक कदम है, लेकिन जिनके पास आधार नहीं है, उन्हें फाइलिंग से पहले इसे प्राप्त करना होगा। सलाह: फाइलिंग शुरू करने से पहले अपने आधार नंबर की उपलब्धता और सत्यापन सुनिश्चित करें। - लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) की शामिलता
एक महत्वपूर्ण बदलाव यह है कि अब सेक्शन 112A के तहत ₹1.25 लाख तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स को आईटीआर-1 में छूट वाली आय के रूप में रिपोर्ट किया जा सकता है। सेक्शन 112A उन लॉन्ग टर्म गेन्स को कवर करता है जो लिस्टेड इक्विटी शेयरों या इक्विटी-ओरिएंटेड फंड्स से प्राप्त होते हैं, जिन पर सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) लागू होता है। पहले, किसी भी प्रकार के कैपिटल गेन्स (लॉन्ग टर्म या शॉर्ट टर्म) होने पर करदाताओं को आईटीआर-2 फाइल करना पड़ता था, जो अधिक जटिल है। यह नया नियम छोटे निवेशकों के लिए राहत लेकर आया है, जो अब सरल आईटीआर-1 फॉर्म का उपयोग कर सकते हैं।
ध्यान देने योग्य बातें:- अगर LTCG ₹1.25 लाख से अधिक है, तो आपको आईटीआर-2 फाइल करना होगा।
- शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स होने पर भी आईटीआर-2 अनिवार्य है।
- अगर आपके पास कैपिटल लॉस है जिसे आप आगे कैरी फॉरवर्ड करना चाहते हैं, तो आईटीआर-1 उपयुक्त नहीं है; इसके लिए भी आईटीआर-2 फाइल करें।
- टैक्स रिजीम का चयन
नया टैक्स रिजीम अब डिफॉल्ट है, जिसके तहत कम टैक्स रेट्स हैं लेकिन डिडक्शंस (जैसे 80C, 80D) उपलब्ध नहीं हैं। अगर आप पुराने टैक्स रिजीम का चयन करना चाहते हैं, जिसमें डिडक्शंस का लाभ मिलता है, तो आपको फॉर्म में “Do you wish to exercise the option under Section 115BAC of opting out of new tax regime?” के तहत “हाँ” चुनना होगा। यह विकल्प आपकी आय और डिडक्शंस के आधार पर महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, अगर आपके पास PPF, LIC, या मेडिकल इंश्योरेंस जैसे निवेश हैं, तो पुराना रिजीम आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। Income Tax Department के अनुसार, यह विकल्प हर साल चुना जा सकता है, बशर्ते आपकी आय व्यवसाय या पेशे से न हो। - डिडक्शंस में विस्तृत जानकारी
पुराने टैक्स रिजीम का चयन करने वालों के लिए, डिडक्शंस की जानकारी अब ड्रॉपडाउन लिस्ट्स के माध्यम से देनी होगी। उदाहरण के लिए:- सेक्शन 80C: PPF, LIC, ELSS, NSC, या सुकन्या समृद्धि योजना जैसे निवेशों की डिटेल्स।
- सेक्शन 80D: मेडिकल इंश्योरेंस प्रीमियम की जानकारी।
- अन्य सेक्शंस: 80G (दान), 80E (शिक्षा ऋण ब्याज), आदि।
यह नया सिस्टम सुनिश्चित करता है कि करदाता सही डिडक्शंस का दावा करें, लेकिन इसके लिए अधिक विस्तृत जानकारी और समय की आवश्यकता होगी। - बैंक अकाउंट्स की जानकारी
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अब करदाताओं को अपने सभी भारतीय बैंक अकाउंट्स की पूरी जानकारी देनी होगी, जिसमें शामिल हैं:
- IFSC कोड
- बैंक का नाम
- अकाउंट नंबर
- अकाउंट का प्रकार (सेविंग्स या करंट)
यह जानकारी रिफंड प्रक्रिया को सुचारू बनाने और आयकर विभाग को करदाता की वित्तीय गतिविधियों का सटीक रिकॉर्ड रखने में मदद करती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई जानकारी छूट न जाए, अपनी बैंक डिटेल्स पहले से तैयार रखें।
- TDS शेड्यूल में विस्तार
पहले, आईटीआर-1 में TDS की जानकारी सीमित थी, जिसमें केवल TDS राशि, डिडक्टर का टैन नंबर, और ग्रॉस राशि देनी होती थी। अब, आईटीआर-2 की तरह, एक विस्तृत TDS शेड्यूल भरना होगा, जिसमें प्रत्येक TDS डिडक्शन के लिए निम्नलिखित जानकारी शामिल होगी:- डिडक्टर का नाम
- टैन नंबर
- TDS राशि
- ग्रॉस राशि (कुल प्राप्तियां)
यह बदलाव TDS की सटीकता बढ़ाता है और गलतियों की संभावना को कम करता है।
अतिरिक्त सलाह
- कैपिटल लॉस की स्थिति: अगर आपके पास कैपिटल लॉस है जिसे आप भविष्य में समायोजित करना चाहते हैं, तो आईटीआर-1 उपयुक्त नहीं है। इसके लिए आपको आईटीआर-2 फाइल करना होगा, क्योंकि आईटीआर-1 में लॉस की रिपोर्टिंग का प्रावधान नहीं है।
- AIS की जाँच: फाइलिंग से पहले अपने Annual Information Statement (AIS) की जाँच करें। AIS में आपकी सभी आय (जैसे शेयर बाजार से आय, ब्याज, डिविडेंड) और TDS की जानकारी होती है। यह सुनिश्चित करता है कि आपकी फाइलिंग में कोई त्रुटि न हो।
- पेशेवर सहायता: अगर आपको नए नियमों को समझने या फाइलिंग में कठिनाई हो रही है, तो TAXGURU JI DIGITAL टैक्स प्रोफेशनल से संपर्क करें।
- MOB. NO -08896759615
निष्कर्ष
आईटीआर-1 फॉर्म में हुए ये बदलाव छोटे निवेशकों और सामान्य करदाताओं के लिए कुछ राहत लाते हैं, लेकिन साथ ही अधिक विस्तृत जानकारी देने की आवश्यकता भी बढ़ाते हैं। आधार नंबर, LTCG, डिडक्शंस, और TDS जैसे बदलावों को ध्यान में रखते हुए, अपनी फाइलिंग की तैयारी पहले से करें। सटीकता के लिए Income Tax Department की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी की जाँच करें। टैक्स से जुड़े और अपडेट्स के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें और अपने सवाल कमेंट्स में पूछें।